ऐ मेरे शहर

ऐ मेरे शहर,

कैसे हो तुम?

मुझे याद हो तुम…

भूला नहीं हूँ मैं तुम्हे।

हाँ अब ज्यादा आ नहीं पाता,

नये और बड़े शहरों में रहता हूँ,

या यूं कहें नौकरी करता हूँ…

ऐ मेरे शहर,

कभी लौट आऊँगा तुम्हारे पास वापिस।

हमेशा के लिये?

क्या पता, शायद…

वैसे हमेशा के लिये बाँध नहीं पाया कोई अब तक,

ना शहर, ना लोग।

सिवाये यादों ने, हजारों यादों ने,

यादों ने तुम्हारी, शहरों की, लोगों की।

ऐ मेरे शहर,

आ जाऊँगा फिर,

शायद…. आराम करने।

तब तक तुम्हारे किनारे पर नहर पूरी बन जायेगी,

फिर टहलूँगा उसी के किनारे,

जैसे टहलता हूँ बडे शहरों में झीलों, तालाबों के किनारे।

पता नहीं वो पुराने दोस्त,

जिन्होनें दोस्ती करवाई थी तुमसे, अब मिलेंगे या नहीं?

या लौटने पर इस बार,

तुम मिलवाओगे नये दोस्तों से?

ऐ मेरे शहर,

हो सकता है, तुम्हे लगे कि मैं ना लौटूँ।

हो भी सकता है…

पर भूलना मत मेरा घर तो तुम में ही है।

पँछी कितनी दूर भी उड़े,

शाम ढलते घोंसले में लौट ही आता है,

मुझे भी यकीन है मैं लौट आऊँगा।

या हो सकता है,

ये दिलासा भर है,

तुम्हारे लिये भी ,मेरे लिये भी।

ऐ मेरे शहर,

एक और बात बतानी है आज कि,

तुम अब तक मेरे लिये शहर ही रहे।

कि जब कि मैं इतने बडे शहरों में रहा,

क्यूँकि मैं आया था तुममें, शहर में, बसने,

कभी किसी दिन एक कस्बे से….

 

विकिपीडिया

सन २००८ की बरसात की बात है। मेरी बारहवीं की परीक्षा और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं का खतरनाक दौर खत्म हो चुका था और मुझे कई सालों बाद खाली समय मिला था। एक दिन मैं अपनी बहन के लिए एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए इन्टरनेट कैफ़े गया। उस समय तक अंतरजाल से मेरा बहुत ही सीमित परिचय था। विषय था– २००८ की बिहार बाढ़। इस विषय पर अंतरजाल में कुछ देर देखने के बाद मुझे एक लेख मिला। मैंने पहली बार अंतरजाल, बल्कि किसी भी अन्य संचार माध्यम में, इतनी व्यवस्थित तरीके से लिखा हुआ लेख देखा। यह इतना सुगम और सहज था कि आप इससे प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकते थे। तो इस तरह हुआ मेरा परिचय मेरी सबसे पसंदीदा जालघरविकिपीडिया से।

उस दिन मैं घर आने के बाद भी इस बारे में गहराई से सोचता रहा। मुझे यह जानकार बेहद आश्चर्य हो रहा था कि विकिपीडिया में विश्व भर के लोग बिना किसी आर्थिक स्वार्थ के इस प्रकार के लेख लिखते हैं, जो निःशुल्क सभी के लिए उपलब्ध हैं। मैंने तभी यह सोच लिया था कि इस बेहतरीन कार्य में मैं भी अपना योगदान भविष्य में जरुर दूँगा। उस समय मेरे पास अंतरजाल की निजी सुविधा नहीं थी। मुझे उस समय तक यह भी नहीं मालूम था कि यह अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओँ जैसे हिंदी में भी उपलब्ध है।

विकिपीडिया एक जालघर है जो कई भाषाओँ मे, सभी विषयों में प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध करने वाला प्रकल्प है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह निःशुल्क है एवं इसका किसी भी प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। इसे दुनिया भर से स्वयंसेवी लोग बनाते हैं, वह भी बिना किसी आर्थिक लाभ के। २००१ में इसकी शुरुआत जिमी वेल्स और लेर्री सेंगर ने की थी। तब से लेकर अब तक ११ सालों में विकिपीडिया ने काफी प्रगति कर ली है। फिलहाल की बात की जाये तो, यानी २०१२के अंत में, विकिपीडिया में लगभग २८५ भाषाओं में कुल मिलाकर २ करोड़ से भी ज्यादा लेख मौजूद हैं, जिन्हें करोड़ों लोगों की मदद से लिखा गया है। ये लेख करोड़ों बल्कि अरबों लोगों के लिए ज्ञान के एक स्रोत के रूप में हैं।

विकिपीडिया ने ना सिर्फ जानकारियों एवं सूचानाओं को सर्वसुलभ बनाया, बल्कि एक क्रांति को जन्म दियाजिसे शायद ज्ञान के लोकतांत्रिकरण की क्रांति कहा जा सकता है।इस प्रकल्प ने एक नया ही रास्ता दिखलाया जो ना जाने कितने ही ऐसे ही प्रकल्पों के लिए एक आदर्श बना। विकी हाउ, विकी आंसर, विकिया की हजारों छोटी छोटी विकि आदि कुछ ऐसे ही प्रकल्प हैं।

जब मैं महाविद्यालय की पढाई के लिये घर से बाहर निकला, तब मेरा अंतरजाल से परिचय बढा। मुझे हिंदी मे विकिपीडिया के बारे मे पता चला और फिर कुछ दिनों बाद मैं खुद भी इसमे थोडा बहुत योगदान देने लगा।

हिंदी विकिपीडिया फिलहाल प्रगति की ओर है। इसमें एक लाख से ज्यादा लेख हैं। हालाँकि, हिंदीभाषी लोगों की संख्या देखते हुए यह प्रगति बहुत कम ही है। हिंदी विकिपीडिया की कुछ समस्याएँ हैं। सक्रिय सदस्यों की कमी इनमें से सबसे प्रमुख है। मैं चिठ्ठाजगत के लोगों से कहना चाहता हूँ कि हमें भी इस कार्य में अपना सहयोग देना चाहिये। यह आगे चलकर एक बडा कदम साबित होगा, जो हिंदी भाषा के लिये भी कल्याणकारी होगा।

बिछोह

कोई बात नहीं ऐसा सिर्फ हमारे साथ बस नहीं हुआ,
यह तो हमेशा से ही होता आया है, होता रहेगा।

कोई बात नहीं, अगर हम तमाम सफ़र साथ नहीं चल सके,
बाकी बचा सफर, एक दूसरे की यादों के सहारे तय कर लेंगें।

कोई बात नहीं, हम अपने बीते पलों में गुजर कर लेंगे,
यह बिलकुल वैसा ही होगा, जैसा पहली बार हुआ था।

कोई बात नहीं, अगर इस बिछोह ने आँखों में आंसू भर दिए,
हमारी पवित्र भावनाएं फिर से होंठों में मुस्कुराहटें भर देंगीं।

कुछ बातें

अजनबियों के साथ रहना कितना मुश्किल है,
अपनों के साथ रहना कितना मुश्किल है,
हद हो गई मेरे अजब स्वभाव की,
अब खुद के साथ रहना कितना मुश्किल है।
—-

बेदिल कई रास्ते नापे, कुछेक मंजिलें भी मिल गईं,
अब दिल की सुनकर कुछ मंजिलें खुद बनाना चाहता हूँ।
—-

ख़ामोशी ही मेरे ज़ज्बातों की जुबान है,
तू समझ ले तो मेहरबानी,
वरना अनजान दोस्तों में,
एक तेरे नाम का इजाफा और सही।
—-

सरे आइना तो मैं काफिर ही हूँ,
मंदिर में तो शर्म से सर झुक जाता है।
—-

दुःख और दुश्मन

कभी हमारे मन में उन लोगों के लिए कड़वाहट थी
अब उन्हें उनके दुःखों में, दर्दों में देखकर सांत्वना है।

गजब की बात है कि कभी जो हमसे नफरत करते थे
आज हमें दुःख-दर्द में देखकर वो हमारे हमदर्द हैं।

तब तो ये दर्द भी बड़े काम की चीज है
कम से कम दुश्मन को हमदर्द तो बनाती है।

यह सब सुख की ही माया है जो अंततः दुखी ही करती है
गैरों को दुश्मन और फरेबों को दोस्त बनाती है।

यह सब सोचकर ही अब हम दुःखों को चाहते हैं
जैसा भी हो, धोखों, छ्लावों से अच्छा ही है अपना दुःख-दर्द।

बची अमानत

टपकता प्रेम, यादें, दर्द, नफरत

मेरे दिल में शायद कोई छेद हो गया।

 

साँसों को थामे, धडकनों को धीमा करता,

दिल से बहती चीजों को रोकने की कोशिश करता।

 

हर घबराहट, हर चिंता बहाव बढ़ा देती

और अपने अनमोल खजाने से जुदा होता मैं।

 

फिर एक झटके ने धड़कने ख़ामोश कर दीं,

अब बची अमानत के साथ आराम से सोऊँगा।

कह लेने दो

अब कह भी दो उन लोगों से उन ख़्वाबों के बारे में,
ये लब तुम्हारे कहना भी चाहतें हैं, इन्हें कह लेने दो।

यूँ आवाज़ को दबा देने से कुछ हासिल ना होगा,
‘कल’ जब अपनी कहानी कहना शुरू करेगा तो तुम पछताओगे,
क्योंकि तुम उसका परिणाम जानोगे;
या फिर तुम समझौते करोगे कहानी का रुख मोड़ने,
दोनों ही तरीकों से तुम खुश ना रह पाओगे,
इसीलिए कह लेने दो दिल को उन ख़्वाबों के बारे में।

दुःख जाने दो कुछ देर के लिए उनके दिल,
क्योंकि उन लोगों में जो तुम्हारे हैं,
वे बाद में देख ना पाएँगे तुम्हे दुखी
और जो गैर हैं, उनके लिए खुद का दिल क्यों दुखाना;
इसलिए कह लेने दो खुद को, उन ख़्वाबों के बारे में।

लोग और हम

लोगों ने मंजिलों के हिसाब से कारवाँ चुने,
हम कारवाँ के हिसाब से मंजिल चुनते चले गये।

लोगों ने हार को जीतने के लिए चुना,
हम जीत को हारने के लिए चुनते चले गये।

लोगों ने जुदा दिखने की चाहत में आम को चुना,
हम आम दिखने की चाहत में जुदा चुनते चले गये।

लोगों ने पत्थरों में खुदा को चुना,
हम पत्थरों में पत्थरों को चुनते चले गये।

लोगों ने गुनाहगारों में हम को चुना,
हम खुद में उन लोगों को चुनते चले गये।

अज्ञान

अनन्त तक ‘भरे’ हुए खालीपन में,

चहुँ ओर ‘रौशन’ अँधियारे में,

महसूस करता हूँ ‘घिरा’ हुआ अकेलापन,

मैं ‘अज्ञान’ आत्मा |

भुलाकर अलौकिक अन्दर में,

खोजता लौकिक बाहर में,

होता हुआ सुख में दुखी मन,

मैं ‘अज्ञान’ आत्मा |

उठूँगा जब ‘जागती’ नींद में,

पा लूँगा ‘प्राप्त’ चीज में,

बन जाऊँगा जब हटेगा ‘ज्ञानी’ अज्ञानपन,

मैं ‘ज्ञान’ आत्मा |

तलाश

झाँकती थीं दूसरों की आँखों में मेरी आँखें,
कुछ ढूँढतीं थीं शायद;

कुछ गुमा हुआ,
शायद मेरा ही प्रतिबिम्ब,
या मुझ को ही;

शायद सुलझाने कोई पहेली,
ढूँढतीं थीं निशाँ;

शायद जानने कोई राज़,
आज़ाद कर देता जो मुझे;

शायद करना चाहती थीं मुझे पूरा,
या और भी अकेला;

शायद ढूँढतीं थीं रहबर कोई,
जो दिखाता जीवन की डगर;

खत्म हो गई तलाश उनकी,
शायद आईने में देख कर|