झाँकती थीं दूसरों की आँखों में मेरी आँखें,
कुछ ढूँढतीं थीं शायद;
कुछ गुमा हुआ,
शायद मेरा ही प्रतिबिम्ब,
या मुझ को ही;
शायद सुलझाने कोई पहेली,
ढूँढतीं थीं निशाँ;
शायद जानने कोई राज़,
आज़ाद कर देता जो मुझे;
शायद करना चाहती थीं मुझे पूरा,
या और भी अकेला;
शायद ढूँढतीं थीं रहबर कोई,
जो दिखाता जीवन की डगर;
खत्म हो गई तलाश उनकी,
शायद आईने में देख कर|